जानें क्यों दिवाली पर जुआ खेला जाता है। दीवाली की पवित्र रात को ताश खेलने की प्राचीन परंपरा का रहस्य, देवी पार्वती और भगवान शिव के साथ इसकी शुरुआत और इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं। दिवाली पर लक्ष्मी पूजन और समृद्धि का संदेश।
मुख्य बिंदु
Toggleदिवाली, भारत में सबसे बड़ा त्योहार है, जिसे हर साल कार्तिक अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इसे दीपोत्सव के नाम से भी जाना जाता है और यह पांच दिन तक चलने वाला त्यौहार है। दिवाली को रौशनी, समृद्धि और धन का प्रतीक माना जाता है। इस पवित्र दिन पर लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, रंगोली बनाते हैं, मिठाइयां तैयार करते हैं, और देवी लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं, ताकि सालभर घर में समृद्धि और खुशहाली बनी रहे।
दिवाली पर जुआ खेलना क्यों है महत्वपूर्ण?
दिवाली की रात को ताश और जुआ खेलने की एक प्राचीन परंपरा है, जिसका उल्लेख कई हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। यह माना जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत देवी पार्वती और भगवान शिव ने दिवाली की रात जुआ खेलकर की थी। कहानी के अनुसार, देवी पार्वती ने अपनी जीत से प्रसन्न होकर यह वरदान दिया कि जो व्यक्ति इस पवित्र रात को ताश खेलेगा, उस पर सालभर सौभाग्य की वर्षा होगी। इस मान्यता के अनुसार, दिवाली पर जुआ खेलना शुभ माना जाता है, जो आने वाले साल में समृद्धि का प्रतीक है।
क्या यह केवल मनोरंजन का साधन है?
दिवाली पर ताश या जुआ खेलना एक मनोरंजन के रूप में भी देखा जाता है। दोस्तों और परिवार के साथ खेलकर लोग इस परंपरा का आनंद उठाते हैं। हालांकि, यह सलाह दी जाती है कि इसे संयम से खेला जाए ताकि किसी प्रकार का आर्थिक नुकसान ना हो। जुआ खेलना अपनी किस्मत आजमाने का तरीका है, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि किसके लिए आने वाला साल शुभ रहेगा।
दिवाली और लक्ष्मी पूजन
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का महत्व भी बहुत बड़ा है। लोग मानते हैं कि इस दिन देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और भक्तों को धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं। इसी कारण लोग अपने घरों, दुकानों और कार्यस्थलों पर दीप जलाते हैं और रंगोली सजाते हैं।
निष्कर्ष
दिवाली का त्योहार केवल रौशनी और समृद्धि ही नहीं बल्कि परिवार के साथ समय बिताने, परंपराओं का आनंद उठाने, और आने वाले वर्ष के लिए आशा व उन्नति की ओर देखने का अवसर भी है।
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